एमसीडी समेत दिल्ली सरकार के सभी स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां खत्म हो गई हैं, लेकिन राज्य सरकार के 7 हजार 73 स्कूलों में से 4 हजार 215 स्कूल ऐसे हैं जिनमें 8वीं तक पढ़ने वाले बच्चों को अभी तक नए सत्र की किताबें नहीं मिली हैं. . . यह स्थिति तब है जब दिल्ली सरकार ने पिछली सुनवाई में दिल्ली हाई कोर्ट को आश्वासन दिया था कि 10 मई तक किताबों की आपूर्ति कर दी जाएगी. बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई.
‘कोई नहीं होगा तो काम नहीं होगा?’
कोर्ट ने शिक्षा विभाग के संबंधित अधिकारी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की चेतावनी देते हुए कहा कि अगर इस बार समय सीमा का उल्लंघन किया गया तो वह खतरे में पड़ जायेंगे. कोर्ट ने दिल्ली सरकार के काम करने के तरीके पर निराशा जताते हुए यह भी कहा कि यहां हालात ऐसे हैं कि अगर कोई नहीं होगा तो कोई काम नहीं होगा. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि दिल्ली में समस्या बिजली वितरण को लेकर है.
कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा, ‘आप काम नहीं कर सकते और दूसरों को भी नहीं करने देंगे. यहां अधिकारियों के पास कोई शक्ति नहीं है. पिछली बार हमें एमसीडी कमिश्नर को पावर देनी पड़ी थी और उन्हें स्कूलों के संबंध में फैसले लेने का आदेश देना पड़ा था।’ कोर्ट एनजीओ सोशल ज्यूरिस्ट की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
78 फीसदी बच्चों के बैंक खाते नहीं खुले हैं
एनजीओ की ओर से पेश वकील अशोक अग्रवाल ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली सरकार की अपनी रिपोर्ट के मुताबिक, 78.65 फीसदी बच्चों के बैंक खाते अभी भी नहीं खुले हैं. वहीं, बिना खाते वाले बच्चों को स्कूल नहीं आने दिया जा रहा है. इस तरह बच्चों को शिक्षा से वंचित कर उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है। जबकि राज्य सरकार को इसके लिए बीच का रास्ता निकालना चाहिए था. इस बीच, दिल्ली सरकार के स्थायी वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने अदालत को आश्वासन दिया कि संबंधित अधिकारी शिकायतों के समाधान के लिए गंभीरता से काम कर रहे हैं।
2 मई को जब शिक्षा विभाग के अधिकारी ने शपथ पत्र दिया तो उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि इस बार सिलेबस काफी हद तक बदल गया है. इस कारण किताबों की छपाई में देरी हो रही है. उन्होंने कोर्ट को आश्वासन दिया कि छुट्टियां खत्म होने से पहले बच्चों को किताबें आदि मिल जाएंगी.